मूली क्या है?
मूली (Radish) एक प्रसिद्ध जड़ वाली सब्ज़ी है, जिसका वैज्ञानिक नाम Raphanus sativus है।
यह क्रूसीफेरी परिवार (Cruciferae) की सदस्य है और भारत की लगभग हर जलवायु में उगाई जाती है।
मूली को इसकी जड़ (Root) और पत्तियाँ (Leaves) दोनों के लिए उपयोग किया जाता है।
यह सलाद, सब्ज़ी, अचार और रायते में खूब इस्तेमाल होती है।
मूली की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
मूली एक ठंडी जलवायु की फसल है।
हालांकि कुछ गर्मी सहन करने वाली किस्में भी उपलब्ध हैं।
| मौसम | उपयुक्त तापमान |
|---|---|
| रबी (सर्दी) | 10°C – 25°C |
| खरीफ (बरसात के बाद) | 25°C – 35°C |
बहुत अधिक गर्मी में मूली जल्दी फूलने लगती है (bolting), जिससे जड़ की गुणवत्ता घट जाती है।
मूली की खेती के लिए मिट्टी
- दोमट या रेतीली दोमट मिट्टी मूली के लिए सबसे उपयुक्त होती है।
- मिट्टी ढीली, भुरभुरी और जैविक पदार्थों से भरपूर होनी चाहिए।
- pH स्तर 6.0 से 7.5 के बीच सबसे अच्छा रहता है।
- जलभराव नहीं होना चाहिए, वरना जड़ सड़ने लगती है।
भूमि की तैयारी
- खेत को गहराई से जोतें और मिट्टी को भुरभुरी बनाएं।
- 10–15 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद (FYM) मिलाएँ।
- खेत को समतल करें और उचित नालियाँ बनाएं ताकि पानी जमा न हो।
बीज की बुवाई
बुवाई का समय
- उत्तर भारत में:
- रबी मूली – सितंबर से नवंबर तक
- खरीफ मूली – जून से अगस्त तक
- दक्षिण भारत में: लगभग सालभर की जा सकती है।
बीज दर
- प्रति हेक्टेयर 10–12 किलोग्राम बीज पर्याप्त है।
बुवाई की विधि
- बीज को 30 सेमी × 10 सेमी की दूरी पर बोना चाहिए।
- बीज को 1.5–2 सेमी गहराई पर बोएं।
- हल्की मिट्टी डालकर सिंचाई करें।
सिंचाई
- पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद करें।
- उसके बाद हर 7–10 दिन में सिंचाई करें।
- मिट्टी में नमी बनी रहे लेकिन जलभराव न हो।
ध्यान दें:
फसल के अंतिम चरण में अधिक पानी देने से मूली फट जाती है।
खाद एवं उर्वरक (Fertilizer Management)
- गोबर की खाद (FYM) – 10–15 टन प्रति हेक्टेयर
- नाइट्रोजन (N) – 60 किग्रा
- फॉस्फोरस (P₂O₅) – 40 किग्रा
- पोटाश (K₂O) – 40 किग्रा
नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के समय और बाकी आधी 30 दिन बाद दें।
रोग एवं कीट नियंत्रण
| रोग / कीट | लक्षण | नियंत्रण |
|---|---|---|
| पत्ती झुलसा | पत्तियाँ पीली और सूखी | मैनकोजेब का 0.2% छिड़काव करें |
| एफिड्स (चूसक कीट) | पत्तियाँ मुड़ जाती हैं | नीम तेल या डाइमिथोएट 30EC का छिड़काव |
| जड़ गलन | जड़ सड़ने लगती है | जल निकासी सही रखें, ट्राइकोडर्मा का उपयोग करें |
फसल की कटाई
- प्रारंभिक किस्में: 40–50 दिन में तैयार हो जाती हैं।
- देर वाली किस्में: 60–70 दिन में तैयार होती हैं।
- जब मूली की जड़ उचित आकार की और मुलायम हो जाए, तब उखाड़ें।
- देरी करने पर जड़ सख्त और तीखी हो जाती है।
उपज (Yield)
| किस्म | उपज (टन/हेक्टेयर) |
|---|---|
| प्रारंभिक | 20–25 टन |
| देर वाली | 30–35 टन |
मूली की प्रमुख किस्में
| किस्म | विशेषता |
|---|---|
| पुसा देशी | गर्मी और बरसात के लिए उपयुक्त |
| पुसा हिमानी | ठंडी जलवायु के लिए |
| जापानी व्हाइट | लम्बी सफेद जड़ |
| पुसा चेतकी | जल्दी तैयार होने वाली, गर्मी में भी उपयुक्त |
| अरका निशांत | मध्यम आकार की, मुलायम गूदा |
लाभ और बाजार मूल्य
- मूली एक कम लागत, जल्दी तैयार होने वाली फसल है।
- बाजार में ताजी मूली की कीमत ₹10 से ₹30 प्रति किलो तक रहती है।
- किसान कम समय में अच्छी आमदनी कमा सकते हैं।
- मूली की पत्तियाँ भी पशु चारे के रूप में उपयोगी हैं।
मूली के स्वास्थ्य लाभ
- पाचन को सुधारती है
- लीवर और पेट के रोगों में लाभकारी
- खून साफ करने में मदद करती है
- वजन घटाने में सहायक
- विटामिन C, कैल्शियम और फाइबर का अच्छा स्रोत
निष्कर्ष
मूली की खेती कम लागत और अधिक लाभ वाली फसल है।
यदि किसान उचित समय, किस्म और तकनीक अपनाएं, तो बहुत ही कम अवधि में अधिक उत्पादन पा सकते हैं।
यह फसल छोटे और सीमांत किसानों के लिए एक बेहतर विकल्प है।
“सही खेती, सही तकनीक – बढ़ेगी आमदनी, खुशहाल होगा किसान।”
